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५ कक्षा की मुखिया को उत्तर
सूत्र
१-कोई महत्त्वाकांक्षा न रखो, और सबसे बढ़कर यह कि किसी चीज का दिखावा न करो, हर क्षण, तुम अधिक-से-अधिक जो हो सकते हो वह बनो ।
(२५ -२-१९५७)
२-वैश्र अभिव्यक्ति में तुम्हारा क्या स्थान हैं, यह तुम्हारे लिये परम पुरुष हीं ठीक करेंगे ।
(२-५-१९५७)
६-परम प्रभु नै अलंध्य रूप से संसार के वृन्दवाद्य में तुम्हारा स्थान शिक्षित कर दिया है, लेकिन वह स्थान जो भी हों, तुम्हें भी अतिमानसिक उपलब्धि की चरम ऊंचाइयों तक चढ़ने का उतना ही अधिकार हैं जितना औरों को ।
(१७-५-१९५७)
४ - अपनी सत्ता के सत्य में तुम क्या हो, यह अलंध्य रूप से निश्रित कर दिया गया है, कोई व्यक्ति या कोई चीज तुम्हें वह होने से नहीं रोक सकती; लेकिन यह तुम्हारे स्वतंत्र चुनाव पर छोड़ा गया है कि तुम वहांतक पहुंचने के लिये कौन-सा रास्ता अपनाओ ।
(१९ -५ -११५७)
५-ऊपर उठते हुए विकास में हर एक अपनी दिशा चुनने के लिये स्वतंत्र है : वह चाहे तो 'सत्य ' के शिखरों की, चरम उपलब्धि की ओर जानेवाली तेज और खड़ी चढ़ाई अपनाये या शिखरों से मुंह मरोड़कर, उतरते हुए अनंत जन्मों के अशिक्षित, सरल, सर्पिल मार्ग को स्वीकार ।
(२३ -५ -११५७)
६ -काल की गति में, बल्कि इसी जीवन मे तुम एक हीं बार, हमेशा के लिये, अटल रूप मे अपना चुनाव कर सकते हो, और तब तुम्हें हर नये अवसर पर उसका अनुमोदन करना होगा; या फिर, अगर आरंभ में तुमने अंतिम निर्णय न लिया हो तो तुम्हें हर क्षण सत्य और मिथ्यात्व के बीच चुनाव करना होगा ।
(२३ -५ -१९५७)
७ - लेकिन अगर तुमने आरंभ में अलंध्य निर्णय नहीं भी लिया, अगर तुम्हें वैध इतिहास के उन अपूर्व क्षणों में ज़ीने का सौभाग्य प्राप्त हो जब 'कृपा' उपस्थित हो, धरती पर अवतरित हुई हों तो वह फिर से, कुछ अपवादरूप क्षणों में ऐसा अंतिम -चुनाव करने की संभावना प्रदान करेगी जो तुम्हें सीधा लक्ष्य तक ले जायेगा ।
(२३ -५ -१९५७) ३२२ |